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________________ वयावए 13. अप्पत्तियं जेण सिया' आसु कुप्पेज्ज वा परो सव्वसो तं 21. न भासेज्जा भासं अहियगामिण 14. सज्झाय सज्झाणरयस्स ताइणो अपावभावस्स तवे रयस्स विज्झाई जं 15 2 से मलं 1. 2. 3. 124 ( वय - वयाव ) प्रे विधि 3 / 1 सक Jain Education International ( अप्पत्तिय) 1 / 1 अव्यय (सिया) विधि 3 / 1 अक अनि अव्यय (कुप्प ) विधि 3 / 1 अक अव्यय (पर) 1 / 1 अव्यय (त) 2 / 1 सवि अव्यय ( भास) विधि 3 / 1 सक ( भासा ) 2/1 [(अहिय) - (गामिणी) 2 / 1 वि] [ ( सज्झाय) - (सज्झाण) - ( रय) 6/1 वि] (ताइ) 6 / 1 वि = For Personal & Private Use Only बुलवाए = मानसिक पीड़ा जिससे = = हो = शीघ्र = क्रोध करने लगे = और = दूसरा - : सर्वथा / बिल्कुल = उस = न = बोले = भाषा को [ ( अपाव) - (भाव) 6 / 1] (तव) 7 / 1 (य) 6/1 वि (विसुज्झ ) व 3 / 1 अक (ज) 1 / 1 सवि अव्यय (मल) 1 / 1 पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 685 छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'इ' को 'ई' किया गया है। वाक्य की शोभा (पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 624) प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2 अहित करनेवाली = स्वाध्याय और सद्-ध्यान में लीन का = उपकारी का = निष्पाप मन का = ताप में = लीन (व्यक्ति) का = शुद्ध हो जाता है = जो = वाक्य की शोभा = दोष www.jainelibrary.org
SR No.002692
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages192
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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