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सुहमेहंता
= सुख में, बढ़ती-हुई
इडिंढ
[(सुह)+ (एहता)] सुह' (सुह) 2/1 एहंता (एह) वकृ 1/2 (इड्ढि) 2/1 (पत्त) भूकृ 1/2 अनि [(महा)-(यस) 5/1]
पत्ता
= वैभव = प्राप्त किया = महान यश के कारण
महायसा
12.
अप्पणट्ठा
= निज के लिए
[(अप्पण)+ (अट्ठा)] [(अप्पण)-(अट्ठा) 1/1] [(पर)+ (अट्ठा)] [(पर)-(अट्ठा) 1/1]
परट्ठा
= दूसरे के लिए
अव्यय
(कोह) 5/1
= क्रोध से
अव्यय
3या
जइवा
अव्यय
= भले ही
भया
(भय) 5/1 (हिंसग) 2/1 वि
= भय से = पीड़ाकारक
हिंसगं
अव्यय
= असत्य
(मुसा) 2/1 (बूया) विधि 3/1 सक अनि
= बोले
नो
अव्यय
T
वि
. अव्यय
कल
अन्नं
(अन्न) 2/1
= दूसरे से
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137) 'कारण' अर्थ में तृतीया या पंचमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 685 नियम से प्रेरणार्थक धातुओं के साथ मूल धातु के कर्ता में तृतीया होती है, किन्तु बोलना, जाना, जानना आदि अर्थों वाली धातुओं के प्रेरणार्थक रूप के साथ मूल धातु के कर्ता में तृतीया न होकर द्वितीया होती है। इसलिए यहाँ अन्नं' में द्वितीया है।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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