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________________ आभिओगमुवट्ठिया [(आभिओग)+ (उवट्ठिया)] आभिओग' (आभिओग) 2/10 उवट्ठिया (उवट्टिय) भूकृ 1/2 अनि = प्रयास में, लगे हुए 10. तहेव सुविणीयप्पा . अव्यय = उसी प्रकार [(सुविणीय)+ (अप्पा)] [(सुविणीय) वि-(अप्प) 1/2] .. (उववज्झ) 1/2 वि उववज्झा = विनीत, मनुष्यों ने = राजकीय वाहन के रूप में काम आनेवाले हया = घोड़े = हाथी गया = देखे जाते हैं दीसंति सुहमेहता (हय) 1/2 (गय) 1/2 (दीसंति) व कर्म 3/2 सक अनि [(सुहं)+ (एहंता)] सुहं' (सुह) 2/1 एहंता (एह) वकृ 1/2 (इड्ढि ) 2/1 (पत्त) भूकृ 1/2 अनि [(महा)-(यस) 5/1] = सुख में, बढ़ते हुए इडिंढ पत्ता = वैभव = प्राप्त किया = महान यश के कारण महायसा 11. अव्यय = उसी प्रकार तहेव सुविणीयप्पा लोगंसि नर-नारिओ दीसंति [(सुविणीय)+ (अप्पा)] [(सुविणीय) वि-(अप्प) 1/2] (लोग) 7/1 [(नर)-(नारी) 1/2] (दीसंति) व कर्म 3/2 सक अनि = विनीत, मनुष्यों ने = लोक में = नर-नारियाँ = देखी जाती हैं कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण, 3-137) ‘कारण' अर्थ में तृतीया या पंचमी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। नारीओ-नारिओ, विभक्ति जुड़ते समय दीर्घ स्वर बहुधा कविता में हस्व हो जाते हैं। (पिशल: प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 182) 122 प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002692
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages192
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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