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= मूल
अन्तिम
परमो
(मूल) 1/1 (परम) 1/1 वि (त) 6/1 स (मोक्ख) 1/1
२
= उसका
मोक्खो
= परमशान्ति
जेण
अव्यय
जिससे
= कीर्ति
कित्तिं सुयं सग्धं
= ज्ञान = प्रशंसनीय
निस्सेसं
(कित्ति) 2/1 (सुय) 2/1 (सग्घ) 2/1 वि (निस्सेस) 2/1 वि [(च)+(अभिगच्छई)] (च) अव्यय अभिगच्छई' (अभिगच्छ) व 3/1 सक
= समस्त
चाभिगच्छई
= और = प्राप्त करता है
अव्यय
= उसी प्रकार
तहेव अविणीयप्पा
[(अविणीय)+ (अप्पा)] [(अविणीय) वि-(अप्प) 1/2] (उववज्झ) 1/2 वि
: उववज्झा
= अविनीत, मनुष्य = राजकीय वाहन के रूप में
काम आनेवाले = घोड़े
- हाथी
हया गया दीसंति दुहमेहंता
(हय) 1/2 (गय) 1/2 (दीसंति) व कर्म 3/2 सक अनि . [(दुहं)+ (एहंता)] दुहं (दुह) 2/1 एहंता (एह) वकृ 1/2
= देखे जाते हैं
= दुःख में, बढ़ते हुए
पूरी या आधी गाथा के अन्त में आने वाली 'इ' का क्रियापदों में बहुधा 'ई' हो जाता है। (पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 138) कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण, 3-137)
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग-2
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