________________
नाहिइ
छेय
(ना) भवि 3/1 सक (छेय) मूल शब्द 2/1 (पावग) 2/1
= जानेगा = हित को = अहित को
पावगं
सोच्चा
जाणइ कल्लाणं
= सुनकर = समझता है = मंगलप्रद को
सोच्चा
जाणइ
= सुनकर = समझता है = अनिष्टकर को = दोनों को
पावगं उभयं
(सोच्चा) संकृ अनि (जाण) व 3/1 सक (कल्लाण) 2/1 वि (सोच्चा) संकृ अनि (जाण) व 3/1 सक (पावग) 2/1 वि (उभय) 2/1 वि अव्यय (जाण) वं 3/1 सक (सोच्चा) संकृ अनि (ज) 1/1 सवि (छेय) 1/1 वि (त) 2/1 सवि (समायर) विधि 3/1 सक
= समझता है
जाणई सोच्चा
= सुनकर
छेयं तं.
= मंगलप्रद = उसको (उसका) = आचरण करे
समायरे 6...
तत्थिमं
...
पढम
[(तत्थ)+ (इम)] (तत्थ) अव्यय
= वहाँ पर इमं (इम) 1/1 सवि
= यह (पढम) 1/1 वि
= सर्वप्रथम ठाणं (ठाण) 1/1
= स्थान महावीरेण (महावीर) 3/1
= महावीर के द्वारा किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा-शब्द काम में लाया जा सकता है। (प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 17)
छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'इ' को 'ई' किया गया है। 3. पिशल: प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 683
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
119
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org