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2.
आयावयाही'
चय
सोगुमल्ल
क
कमाही '
कमियं
खु
दुखं
छिंदाहि '
दोसं
विज्ज
रागं
एवं
सुही
होहिसि
संपराए
3.
सव्वभूयऽ
प्पभूयस्स
1.
2.
3.
4.
5.
( आयावय) प्रे' अनि विधि 2 / 1 सक
(चय) विधि 2/1 सक
(सोगुमल्ल) 2/1
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(काम) 2/2
(कम) विधि 2/1 सक
( कम ) भूक 1 / 1
अव्यय
( दुक्ख ) 1/1
(छिंद) विधि 2 / 1 सक
अव्यय
(सुहि) 1/1 वि
(हो) भवि 2/1 अक
(संपराअ) 7/1
[(सव्व) + (भूय) + (अप्प ) + (भूयस्स ) ] [ ( सव्व ) - (भूय ) ' - ( अप्प ) - (भूय) * 6/1s वि]
= तपा
= छोड़
= अति कोमलता को
इच्छाओं को
(दोस) 2/1
(वि- णी - विणएज्ज) विधि 2 / 1 सक अनि = हटा
(राग) 2/1
= राग को
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
=
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= वश में कर
= पार किये गए
= निश्चय ही
=दुःख
= नष्ट कर
= द्वेष को
= इस प्रकार
सुखी
होगा
=
=
=
यहाँ रूप बनना चाहिए— आयावयहि, पर कभी-कभी विधि में अन्त्यस्थ अ (य) के स्थान पर आ (या) हो जाता है। इसी प्रकार "कमाही', 'छिंदाहि' में है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-158) । यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'हि' को 'ही' किया गया है।
आतप् (अय) आतापय- आयावय ।
भूय = प्राणी
भूय (वि) = समान
कभी-कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग तृतीया या पंचमी के स्थान पर पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134)
संसार में
= सब प्राणियों का, अपने
समान के कारण
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