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अप्पाणमोसरंतं
= निजको = फिसलते हुए
गुणेहि लोओ
[(अप्पाणं)+ (ओसरंत)] अप्पाणं (अप्पाण) 2/1 ओसरंतं (ओसर) वकृ 2/1 (गुण) 3/2 (लोअ) 1/1 अव्यय (लक्ख) व 3/1 सक
= गुणों से
= मनुष्य
ण
= नहीं
लक्खेइ
= देखता है ।
10. एक्के
लहुअ-सहावा गुणेहि लहिउँ महंति धण-रिद्धिं अण्णे विसुद्ध-चरिआ विहवाहि'
(एक्क) 1/2 सवि [(लहुअ) वि-(सहाव) 1/2] (गुण) 3/2 (लह) हेक (मह) व 3/2 सक . [(धण)-(रिद्धि) 2/1] (अण्ण) 1/2 सवि [(विसुद्ध) वि-(चरिअ) 1/2] (विहव) 3/2 (गुण) 2/2 (विमग्ग) व 3/2 सक
= कुछ (व्यक्ति) = तुच्छ, स्वभाव = गुणों के द्वारा = प्राप्त करने के लिए (की) = इच्छा करते हैं = धन वैभव को = दूसरे = विशुद्ध, चरित्र = वैभव के द्वारा
= गुणों को
विमग्गंति
= चाहते हैं
11.
दूमिज्जंता (दूम) कर्म वकृ 1/2
= पीड़ा दिये जाते हुए हिअएण' (हिअअ) 3/1
= हृदय में किंपि अव्यय
= कुछ चिंतेंति (चिंत) व 3/2 सक
= विचारते हैं कभी-कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-136) 'इच्छा' अर्थ की क्रियाओं के साथ हेत्वर्थक कृदन्त का प्रयोग होता है। अपभ्रंश का प्रत्यय है। कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137)
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प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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