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सरस्सई
(सरस्सई) 1/.1 अव्यय
उण
(अ-समग्ग-अ-समगा) 1/1 वि .
असम-गा किंपि विणडेइ
= सरस्वती = किन्तु = अपूर्ण = किंचित् = उपहास करती है
अव्यय
(विणड) व 3/1 सक
5.
लग्गिहिइ
(लग्ग) भवि 3/1 सक
अव्यय
वा
अव्यय
सुअणे. वयणिज्जं दुज्जणेहिँ . भण्णंतं
= लगेगी = नहीं = अथवा = सज्जनों को = निन्दा = दुर्जनों द्वारा = कही हुई = उनके = किन्तु = वह = सज्जनों की निन्दा-दोष
के कारण = घटित हो जाती है
(सुअण) 2/2 (वयणिज्ज) 1/1 (दुज्जण) 3/2 (भण्णंत) कर्म वकृ 1/1 अनि (त) 6/2 सवि अव्यय (त) 1/1 सवि [(सुअण)+(अववाअ)+ (दोसेण)] [(सुअण)-(अववाअ)-(दोस) 3/1] (संघड) व 3/1 अक
ताण
पुण
• सुअणाववाअदोसेण संघडइ .
6.
जाण (ज) 4/2 स
असमेहिँ . . (असम) 3/2 वि 'विहिआ . . . (विहिअ) भूकृ 1/1 अनि जाअइ. (जाअ) व 3/1 अक
(णिंदा) 1/1 समा
(समा). 1/1 वि सलाहा
(सलाहा) 1/1
अव्यय ____1. समा = के समान (सम-संमा)
= जिनके लिए = असमान के द्वारा = की गई = होती है = निन्दा = के समान = प्रशंसा = भी.
जिंदा
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
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