________________
सा
लच्छी
तेण
विणा
भण
कस्स
न
मंदिरं
पत्ता
14
47.
वडवाणलेण
गहिओ
महिओ
य
सुरासुरेहि
सयलेहिं
लच्छीड़
उवहि
मुक्को
पेच्छह
गंभीरमा '
तस्स
48.
रयणेहि
निरंतरपूरिएहि
1.
2.
100
(ता) 1 / 1 सवि
(लच्छी) 1/1
(त) 3/1 स
अव्यय
(भण) विधि 2/1 सक
(क) 6/1 सवि
अव्यय
(मंदिर) 2/1
( पत्त > पत्ता) भूकृ 1 / 1 अनि
Jain Education International
(वडवाणल) 3/1
(ग) भूक 1/1
(मह) भूकृ 1 / 1
अव्यय
[(सुर) + (असुरेहि)]
[(सुर) - (असुर) 3/2]
(सयल) 3 / 2 वि
( लच्छी) 3/1
( उवहि) 1/1 मूलशब्द
(मुक्क) भूकं 1 / 1 अनि
(पेच्छ) विधि 2/2 सक
(गंभीरिमा) 2/1 मूलशब्द
(त) 6/1 स
( रयण) 3/2
[ (निरंतर) अ = निरंतर - (पूर) भूक 3/2]
= वह
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
=
=
=
लक्ष्मी
"
कहो
= किसके
: नहीं
For Personal & Private Use Only
उसके
=
बिना
= घर
= पहुँची
= वडवानल के द्वारा
= ग्रसा हुआ
= मथा गया
= और
=
- सुर-असुरों द्वारा
= सकल
· = लक्ष्मी के द्वारा
= समुद्र
= त्यागा गया
देखो
=
=
गम्भीरता को
'बिना' के योग में तृतीया, द्वितीया या पंचमी विभक्ति होती है।
किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जाता है। (पिशल : प्राकृत
भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517 )
= उसकी
= रत्नों से
= निरन्तर भरे हुए
www.jainelibrary.org