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________________ (गय) भूकृ 1/1 अनि = गया अव्यय = वहाँ अव्यय = ही महग्धं (महग्घ) 1/1 वि = मूल्यवान अव्यय = मत (दोस) 2/1 = दोष को चिय अव्यय गेण्हह = ग्रहण करो = विरल विरले वि (गेण्ह) विधि 2/2 सक (विरल) 2/2 वि अव्यय (गुण) 2/2 (पसंस) विधि 2/2 सक (जण) 6/1 (अक्ख)-(पउर) 1/1 वि] पसंसह जणस्स अक्खपउरो = भी = गुणों की (को) = प्रशंसा करो = मनुष्य के = बहुत अधिक रुद्राक्ष = भी = समुद्र = कहा जाता है = रत्नाकर = लोक में अव्यय उवही भण्णइ . (उवहि) 1/1 (भण्णइ) व कर्म 3/1 सक अनि (रयणायर) 1/1 (लोअ) 7/1 रयणायरो . = लक्ष्मी के लोए "46. . • लच्छीइ विणा' रयणायरस्स गंभीरिमा = बिना (लच्छी) 31 अव्यय (रयणायर) 6/1 (गंभीरिमा) 1/1 . = रत्नाकर की = गम्भीरता तह अव्यय - उसी तरह चेव अव्यय 1. 'बिना' के योग में तृतीया, द्वितीया या पंचमी विभक्ति होती है। . प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2 99 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002692
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages192
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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