________________
.
जीसे' दुट्ठभुयंगा खणं
(जी) 6/1 स [(दुट्ठ)-(भुयंग) 1/2]
= जिसके = दुष्ट सर्प = क्षण के लिए
अव्यय
अव्यय
=भी
पासं
(पास) 2/1
= पास को
अव्यय
- नहीं
मेल्लन्ति
(मेल्ल) व 3/2 सक
= छोड़ते हैं
43.
बहुतरुवराण मज्झे चंदणविडवो भुयंगदोसेण छिज्झइ निरावराहो साहु
[(बहु) वि-(तरु)-(वर) 6/2 वि] (मज्झ) 7/1 [(चंदण)-(विडव) 1/1] [(भुयंग)-(दोस) 3/1] (छिज्झइ) व कर्म 3/1 सक अनि (निरावराह) 1/1 वि (साहु) 1/1 आगे संयुक्त अक्षर (व्व) के आने से दीर्घ स्वर हस्व स्वर हुआ है।
= बहुत बड़े वृक्षों के .. = बीच में = चन्दन की शाखा = सर्प दोष के कारण = काट दी जाती है = अपराधरहित
= भद्र पुरुष
अव्यय
= जैसे
दुष्ट संग के कारण
[(असाहु)-(संग) 3/1]
असाहुसंगण 44. रयणायरेण रयणं परिमुक्कं जइ वि अमुणियगुणेण तह वि
(रयणायर) 3/1 (रयण) 1/1 (परिमुक्क) भूकृ 1/1 अनि अव्यय [(अमुणिय) भूक-(गुण) 3/1]
= समुद्र के द्वारा = रत्न = परित्याग किया गया = यद्यपि = नहीं जाने हुए, गुणों के कारण = तो भी
अव्यय
अव्यय
मरगयखंड
[(मरगय)-(खंड) 1/1]
= पन्ने का टुकड़ा = जहाँ
जत्थ
अव्यय
I
1.
यहाँ ‘जीसे' (स्त्रीलिंग) का प्रयोग विचारणीय है। पुल्लिंग का प्रयोग अपेक्षित है।
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org