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________________ परोवयारिणो (परोवयारि) 1/2 वि (त) 3/2 स = दूसरों का उपकार करनेवाले = उनके द्वारा अव्यय अव्यय -नहीं अव्यय = कुछ 41. सुसिएण निहसिएण (सुस) भूकृ 3/1 (निहस) भूकृ 3/1 = सूखे हुए = घिसे हुए अव्यय अव्यय = तथा कह वि अव्यय con = किसी न किसी प्रकार ... = निश्चय ही = चन्दन के द्वारा = गन्ध फैली हुई चंदणेण महमहियं सरसा = सरस वि । अव्यय . (चंदण) 3/1 (महमह) भूकृ 1/1 (सरस) 1/1 वि अव्यय [(कुसुम)-(माला) 1/1] अव्यय (जा) भूकृ 1/1 [(परिमल)-(विलक्खा) 1/1 वि] कुसुममाला जह. = भी = फूलों की माला = जिससे कि = अस्तित्व में आई हुई ___ - सुगन्ध से लज्जित जाया परिमल विलक्खा 42. . . . - एक एक्को. चिय दोसो (एक्क) 1/1 वि अव्यय (दोस) 1/1 (तारिस) 6/1 वि [(चंदण)-(दुम) 6/1] (विहि)-(घड) भूक 1/1] = ही = दोष = उस जैसे तारिसस्स चंदणदुमस्स . विहिघडिओ = चन्दन के वृक्ष का - विधि के द्वारा घड़े हुए प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2 97 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002692
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages192
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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