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________________ रयणायरस्स . (रयणायर) 6/1 = रत्नाकर के अव्यय - नहीं fo अव्यय - गर्व गव्वो करिणो मुत्ताहलसंसए - (गव्व) 1/1 (करि) 6/1 [(मुत्ताहल)-(संसअ) 7/1] अव्यय [(मय)-(विन्भला) 1/1 वि] (दिट्ठि) 1/1 = हाथी की = मोती के संशय में = भी = मद में तल्लीन ..........!! मयविन्भला दिट्ठी = दृष्टि 49. रयणायरस्स (रयणायर) 6/1 = समुद्र के - नहीं अव्यय अव्यय श्री होइ तुच्छिमा निग्गएहि रयणेहिं (हो) व 3/1 अक (तुच्छिमा) 1/1 (निग्गअ) भूक 3/2 अनि (रयण) 3/2 तह वि अव्यय .. = होती है = तुच्छता = बाहर निकले हुए = रत्नों के कारण = तो भी (फिर भी) = किन्तु = चन्द्रमा के समान = थोड़े = समुद्र में . = रत्न !! चंदसरिच्छा विरला रयणायरे . . रयणा . 50. जइ वि अव्यय [(चंद)-(सरिच्छ) 1/2 वि] (विरल) 1/2 वि (रयणायर) 7/1 (रयण) 1/2 अव्यय = यद्यपि अव्यय = विधि के वश से कालवसेणं ससी [(काल)-(वस) 3/1] (ससि) 1/1 = चन्द्रमा प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2 101 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002692
Book TitlePrakrit Gadya Padya Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2005
Total Pages192
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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