________________
गरुयं पुरिसस्स' गुणगणारुहणं
= महान = पुरुष के द्वारा
(गरुय) 1/1 वि (पुरिस) 6/1 [(गुण) + (गण)+ (आरुहणं)] [(गुण)-(गण)-(आरुहण)) 1/1] (मुत्ताहल) 1/1 अव्यय (गरुय) 1/1 वि
गुण-समूह का ग्रहण
मुत्ताहलं
गरुयं
अव्यय
अव्यय
गरुयं सिप्पिसंपुडयं
(गरुय) 1/1 वि [(सिप्पि)-(संपुड) 1/1 स्वार्थिक 'य' प्रत्यय]
.
-सीप का खोल ..
.
36. खरफरुसं सिप्पिउडं
= रूखा और कठोर = सीप का खोल
रयणं
, - रत्न
= वह
[(खर) वि-(फरुस) 1/1 वि] [(सिप्पि)-(उड) 1/1] (रयण) 1/1 (त) 1/1 सवि (हो) व 3/1 अक (ज) 1/1 सवि (अणग्धेय) 1/1 वि (जाइ) 3/1 (किं) 1/1 सवि
= होता है = जो
अणग्धेयं जाईइ किं ।
= बहुमूल्य = जन्म से
=क्या
अव्यय
॥
किज्जइ
॥
= बतलाइए तो = किया जाता है = गुणों से
(कि) व कर्म 3/1 सक (गुण) 3/2 (दोस) 1/2
गुणेहि
दोसा
= दोष
1.
कभी-कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग तृतीया के स्थान पर पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134)
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग-2
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org