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[(गुण)-(वज्ज) भूक 6/2] (गरुय) 1/1 वि
गुणवज्जियाण' गरुयं चिय कलंक
= गुणहीन के कारण = बड़ा = निश्चय ही = कलंक
अव्यय
(कलंक) 1/1
34.
गुणहीणा
- गुणहीन
-जो
पुरिसा
कुलेण
= पुरुष = कुल के कारण = गर्व = धारण करते हैं
गव्वं वहंति
वे
[(गुण)-(हीण) भूकृ 1/2 अनि] (ज) 1/2 सवि (पुरिस) 1/2 (कुल) 3/1 (गव्व) 2/1. (वह) व 3/2 सक (त) 1/2 सवि (मूढ) 1/2 वि [(वंस)+ (उप्पन्नो)] [(वंस)-(उप्पन्न) भूकृ 1/1 अनि] अव्यय (धणु) 1/1 [(गुण)-(रह) भूकृ 7/1] अव्यय (टंकार) 1/1
= मूढ़ = बांस से उत्पन्न
वंसुप्पन्नो
= यद्यपि = धनुष = रस्सीरहित होने के कारण
= नहीं ।
धणू गुणरहिए नत्थि . टंकारो 35. जम्मतरं
= टंकार
= जन्म-संयोग
[(जम्म)+ (अंतर)] [(जम्म) (अंतर) 1/1] अव्यय (गरुय) 1/1 वि
न
..
.
= नहीं
गरुयं
= महान
1.
कभी-कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग तृतीया विभक्ति के स्थान पर पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-135)
2.
-
प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ भाग - 2
93
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