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________________ गया (है), (जो) मनुष्यों के नयनों के लिए प्रिय (हैं), उस विलासिनी (महिला) के लिए वणिक के द्वारा वहाँ प्रदान किए गए। (4) शरद ऋतु में आनेवाले चन्द्रमा की तरह मुखवाली (उस) विलासिनी को उस (वणिक) के द्वारा फिर कहा गया। (5) मेरे द्वारा राजा का पुत्र मारा गया (है)। यह सारी (बात) ही (उसके द्वारा) स्थिर स्नेहवाली (विलासिनी) को कही गई। (6) उस (बात) को सुनकर उस (विलासिनी) के द्वारा (वणिक के लिए) सस्नेह कहा गया (कि) यह (बात) किसी के लिए भी (तुम) प्रकट मत करना। (7) यहाँ पर राजा के द्वारा पुत्र को न पाते हुए होने के कारण, उसके द्वारा नगर में ढोल-(बजाकर) आज्ञा करवायी गयी (है)। (8) (और राजा के द्वारा कहलवाया गया कि) जो कोई भी राजा के पुत्र को बताता है (बतायेगा) वह ही सम्पत्ति के साथ भूमि को पायेगा। ___घत्ता - तब किसी ढीठ (व्यक्ति) के द्वारा शीघ्रता से राजा के आगे कहा गया (कि) हे देव! तुम्हारा सुत (पुत्र) मेरे द्वारा देखा गया (है), वह (तुम्हारे) नए मंत्री द्वारा मार दिया गया (है)। 2.18 (1) उस बात को सुनकर पृथ्वी का नाथ (राजा) सरलबाहु, मंत्री से प्रसन्न हुआ। (2) (राजा ने कहा कि जंगल में दिए गए) तीन फलों में से मंत्रीवर के एक फल का ऋण मेरे द्वारा चुका दिया गया (है)। (3) (मंत्री ने कहा कि) हे नाथ! अन्य दो (फलों के ऋण) को आज ही क्षमा कीजिए। पृथ्वी का मुखिया (राजा) क्षण भर में प्रसन्न हुआ। (4) राजा के स्नेह को जानकर मंत्री के द्वारा सुन्दर देहवाला राजा का पुत्र सौंप दिया गया। (5) हे नरेश्वर! (आप) (मेरे) परम मित्र हो! हे देव! मेरे द्वारा तुम्हारा चित्त पहचान लिया गया (है)। (6) (इस तरह से) वणिक के वचन को सुनकर उस राजा के द्वारा (वणिक के लिए) खूब पुरस्कार सार्वजनिक रूप से घोषित किया गया। (7) (इस प्रकार) जो मनुष्य अच्छों की संगति को धारण करता है, वह मन से चाही गई सम्पत्ति को प्राप्त करता है। (8) हे पुत्र! यह उच्च (पुरुष) की कहानी (जो) गुणों की परम्परावाली है, तेरे लिए कही गई है (इसको) (तू) हृदय में समझ। घत्ता - खेचर (विद्याधर) के द्वारा हितकारी बुद्धि से करकंड समस्त कलाएँ सिखाया गया। इसकी नीति से जो मनुष्य व्यवहार करता है वह अवश्य ही भूमण्डल अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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