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सरयागमससहरआणणीहें मइँ मारिउ णंदणु णरवईहिँ तं सुणिवि ताइँ पणिउ सणेहु एत्तहिँ अलहंतें सुउ णिवेण जो रायों णंदणु कहइ को वि
पुणु कहियउ तेण विलासिणीहें॥4॥
इउ कहियउ सयलु वि थिररईहिँ ॥5॥ __ मा कासु वि पयडु करेहि एह॥6॥
देवाविउ डिंडिमु णयरें तेण ॥7॥ सहुँ दविणइँ मेइणि लहइ सो वि॥8॥
घत्ता
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ता केण वि धि? तुरियऍण णरणाहहाँ अग्गइँ भणिउ। उवलक्खिउ तुह सुउ देव मइँ सो णवलइँ मंतिएँ हणिउ॥9॥
2.18
तं वयणु सुणेविणु सरलबाहु तिहिँ फलहिँ मज्झें एक्कहाँ फलासु अवराह दोण्णि अज्ज वि खमीसु परियाणिवि मंतिइँ रायणेहु अइ होहि णरेसर परममित्तु वणिवयणु सुणेविणु णरवरेण गुरुआण संगु जो जणु वहेइ एह उच्चकहाणी कहिय तुज्झु
संतुट्ठउ मंतिहें धरणिणाहु॥1॥ णिरहरियउ रिणु मइँ मइवरासु॥2॥ खणि हुयउ पसण्णउ धरणिईसु॥3॥ णिवणंदणु अप्पिउ दिव्वदेहु ॥4॥ म. देव तुहारउ कलिउ चित्तु॥5॥ अइपउरु पसाउ पइण्णु तेण॥6॥ हियइच्छिय संपइ सो लहेइ॥7॥ गुणसारणि पुत्तय हिय बुज्झु॥8॥
घत्ता
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करकंडु जणाविउ खेयर हियबुद्धिएँ सयलउ कलउ। इय णित्तिएँ जो णरु ववहरइ सो भुंजइ णिच्छउ भूवलउ॥9॥
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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