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________________ के द्वारा कहा गया- हे उत्तम स्त्री! सुनो। (3) (स्वप्न में देखे गए) ऊँचे (और) भारी भार धारण करनेवाले गिरिवर (पर्वत) से (तुम्हारा) पुत्र अत्यधिक धैर्यवान होगा। (4) मकरन्द (फूलों की रज) की सुगन्ध से आकर्षित किए गए भँवर-(समूह) सहित तरुवर (कल्पवृक्ष) (देखने) से (तुम्हारा) (पुत्र) लक्ष्मीवान (तथा) दानी (होगा)। (5) देवताओं की रमणियों की क्रीड़ा से सुन्दर (लगनेवाले) इन्द्र का घर (देखने) से (तुम्हारा) पुत्र देवताओं द्वारा वन्दनीय (होगा)। (6) (जिसकी) जलतरंगें आकाश से छू ली गई हैं (ऐसा) समुद्र (देखने) से (तुम्हारा पुत्र) गुणों का समूह (तथा) गम्भीर (होगा)। (7) अति घने जड़त्व का विनाश कर देनेवाली अग्नि (देखने) से (वह) पापरूपी मल को जला देगा। (8) (और भी) (तुम्हारा पुत्र) सुन्दर, मनोहर, गुणरूपी मणियों का घर, युवती-वर्ग का प्रिय और प्रेम का देवता (होगा)। (9) (तुम्हारा पुत्र) ईर्ष्यारहित (तथा) अपने कुलरूपी मानसरोवर का राजहंस (होगा) (और ऐसा होगा) (जिसके द्वारा) ज्ञानी वर्ग की प्रशंसा प्राप्त कर ली गई है। (10) (जो) साधु होकर उपसर्ग सहन करके ध्यान के द्वारा मोक्ष के लाभ को प्राप्त करेगा। (11) जिनेन्द्र (और) मुनिवर को प्रणाम करके हर्षित मनवाले दोनों ही मनुष्य (पति-पत्नी) निज घर को चले गए। (12) गोप भी वहाँ निदान सहित मरकर वणिक की पत्नी के उदर में आकर रहा। घत्ता - वहाँ (वह) गर्भ में आकाश में स्थित सूर्य की तरह, कमलिनी के पत्ते पर जल की तरह, सघन सिप्पिदल में (खोखली जगह में) असाधारण मोती की तरह शोभायमान हुआ। 3.5 ___ (1) (जन्मे हुए) उस पुत्र से मनुष्य वर्ग सन्तुष्ट हुआ। आकाश में घने बादलों द्वारा जल बरसाया गया। (2) नगर का दुष्ट और अत्यन्त पापी (एवं) ईर्ष्यालु/द्वेषी वर्ग डर गया (दुःखी हुआ)। देवताओं द्वारा आकाश में हर्ष (और) आनन्द घोषित किया गया। (3) (जिसके द्वारा) सन्तोष दिया गया (ऐसा) दिव्य दुंदुभि-घोष (उत्पन्न) हुआ। समस्त वन खिले हुए फूलों को छोड़ने लगा (बरसाने लगा)। (4) आनन्दकारी मन्द पवन चला। बावड़ियों और कुओं में अत्यधिक जल अपभ्रंश काव्य सौरभ 81 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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