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उत्तुंगें भरभारियधरेण कुसुमरयसुरहिकयमहुअरेण सुररमणीकीलामणहरेण जललहरीचुंबियअंबरेण अइणिविडजडत्तविणासणेण सुंदरु मणहरु गुणमणिणिकेउ णियकुलमाणससररायहंसु उवसग्गु सहेवि हवेवि साहु जिणु मुणि णवेवि हरिसियमणा । गोवउ वि णियाणे तहिँ मरेवि
होसइ सुधीरु सुउ गिरिवरेण ।।3।। चाइउ लच्छीहरु तरुवरेण ।।4।। सुरवंदणीउ वरसुरहरेण ।।5।। गुणगणगहीरु रयणायरेण॥6॥ कलिमलु णिड्डहइ हुआसणेण ॥7॥ जुवईयणवल्लहु मयरकेउ॥8॥ णिम्मच्छरु वुहयणलद्धसंसु॥9॥ पावेसइ झाणे मोक्खलाहु॥10॥ णियगेहु गयइँ विण्णि वि जणाइँ॥11॥ थिउ वणिपियउयर' अवयरेवि॥12॥
घत्ता
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तहिँ गब्भएँ अन्भएँ णाइँ रवि कमलिणिदलें णावइ जलु। सिप्पिउडएँ णिविडएँ ठिउ सहइ णं णितुल्लु मुत्ताहलु॥13॥
3.5
तेण पुत्तेण जणु तुट्ठ दुट्ठपाविट्ठपोरत्थगणु त? दुंदुहीघोसु कयतोसु हुउ दिव्वु मंदु आणंदयारी हुओ वाउ । गोसमूहेहिँ विक्खित्तु थणदुद्ध
खे महंतेहिँ मेहेहिँ जलु वुट्ठ॥1॥ णंदि आणंदि देवेहिँ णहे घुट्ठ॥2॥ फुल्ल पप्फुल्ल मेल्लेइ वणु सव्वु॥3॥ वावि कूवेसु अब्भहिउ जलु जाउ॥4॥ एंतजंतेहिं पहिएहिँ पहु रुद्ध॥5॥
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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