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(तब) (उसने) हाहाकार मचाया। (पानी में) तैरे हुए (तैरते हुए) (लोगों) के लिए ऊँची आवाज (निकाली)- अरे-अरे! जहाज स्थिर किया जाए। (8) हे उपस्थित (लोगों)! यहाँ (पानी में) रत्न गिरा (है)। अवलोकन के लिए (आप) (जहाज) (रोकें) फिर उसको लाकर मेरे लिए (दो)। (9) हे देखनेवाले (मनुष्यों)! चलते हुए जहाज में सागर में लुप्त हुआ रत्न कहाँ प्राप्त किया जायेगा?
घत्ता - यह मनुष्य-जन्म रत्न के समान है। (किन्तु) (मनुष्य) रति-सुखरूपी निद्रा के वश में हुआ भ्रमण (करता है) (इस तरह) (तुम्हारे द्वारा) हराया गया मैं संसार-समुद्र में किस प्रकार खोजता हुआ फिर (मनुष्य-जन्म) पाऊँगा।
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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