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निवडिउ एत्थु रयणु अवलोयहाँ सायर नट्ठ वहंतहों पोयहाँ
तं आणेवि पुणु वि महु ढोयहाँ॥8॥ कहिँ लन्भइ माणिक्कु पलोयहाँ॥9॥
घत्ता
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इय मणुयजम्मु माणिक्कसमु रइसुहनिद्दावसजायभमु। .. संसारसमुद्दि हरावियउ जोयंतु केम पुणु लहमि हउँ॥10॥ ,
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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