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________________ राजा हुए (हैं)? (2) (वह) (भरत) बूढ़ा सियार (है) (जिसके द्वारा) (अब भी) समृद्धि बुलाई जाती है। इससे मानो मेरे लिए हँसी दी जाती है। (3) जो बलवान चोर (है) वह राजा (होता है), (उसके द्वारा) फिर निर्बल (व्यक्ति) निष्प्राण किया जाता है। (4) पशु के द्वारा पशु का माँस ही छीना जाता है। मनुष्य के द्वारा मनुष्य का प्रभुत्व ही छीना जाता है। (5-6) रक्षा की इच्छा से व्यूह रचकर, एक की आज्ञा लेकर वे (राजा) निवास करते हैं। त्रिलोक में खोज किया हुआ (है) (कि) सिंह का समूह नहीं देखा गया (है)। (7) मान के भंग होने पर मरण श्रेष्ठ (है), जीवन नहीं। हे दूत! ऐसा मेरे द्वारा सचमुच विचारा गया (है)। (8) भाई आवे, (मैं) उसके घात को दिखलाऊँगा। सन्ध्याराग की तरह एक क्षण में नष्ट कर दूंगा। (9) अग्नि की ज्वालाओं को देवेन्द्र भी नहीं सह सकता है, (तो) मुझ कामदेव के बाणों को कौन सहेगा? (10) राजा की परम भलाई एक (इसमें) ही है यदि (राजा) जिनदेव की शरण को चला जाये। घत्ता - (मैं) गजसमूह को लूलूंगा, मारूँगा (और) योद्धाओं को रण-पथ में चूर-चूर करूँगा। राजा आवे, (अपने) बाहुबल को मुझ बाहुबलि के आगे दिखाए। 16.22 (1) तब दूत निज-नगर को गया और उस (नगर) में राजा के घर गया। (उसके द्वारा) बलरूपी सागर, पृथ्वी का ईश आदर-सहित प्रणाम किया गया। उसने (राजा को) कहा- (2) हे देव! हे नरेश्वर! बाहुबलि खतरनाक (है) (वह) स्नेह नहीं रखता है, (किन्तु) धनुष की डोरी पर बाण रखता है। (3) (वह) कार्य नहीं करता (पर) कमर कसता है। (वह) सन्धि नहीं चाहता है, (पर) युद्ध चाहता है। (4) (वह) तुमको नहीं देखता है, (अपनी) भुजाओं के बल को देखता है। (वह) (तुम्हारी) आज्ञा को नहीं पालता है, किन्तु अपनी दलील को पालता है। (5) (वह) स्वाभिमान नहीं छोड़ता है, भय का भाव छोड़ता है। (वह) प्रारब्ध को नहीं विचारता है, (किन्तु) पुरुषार्थ को विचारता है। (6) (वह) शान्ति नहीं विचारता है, कुटुम्ब का झगड़ा विचारता है। (वह) पृथिवी नहीं देता है, (किन्तु) बाणों की पंक्ति देता है। (7) (वह) तुमको प्रणाम नहीं करता है, मुनिसमूह को प्रणाम करता अपभ्रंश काव्य सौरभ 55 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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