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जो बलवंतु चोरु सो राणउ हिप्पड़ मृगहु मृगेण जि आमिसु रक्खाकखइ जूहु रएप्पिणु ते णिवसंति तिलोइगविट्ठउ माणभंगि वर मरणु ण जीविउ आवउ भाउ घाउ तहु दंसमि सिहिसिहाहं देविंदु विण सहइ एक्कु जि परउव्वारुणरिंदहु
घत्ता
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णिब्बलु पुणु किज्जइ णिप्राणउ ॥3॥ हिप्पड़ मणुयहु मणुण जि वसु ॥4॥ एक्कहु केरि आण लएप्पिणु ॥5॥ सीह केरउ वंदु ण दिट्ठउ ॥ 6 ॥ एहउ दूय सुट्ठ मई भाविउं ॥ 7 ॥ संझाराउ व खणि विद्धंसमि ॥ 8 ॥ महु मणसियहु विसिह को विसह ॥ १ ॥ जड़ पइसरइ सरणु जिणयंदहु ॥10 ॥
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संघट्टमि लुट्टमि गयघडहु दलमि सुहड रणमग्गइ । पहु आवउ दावउ बाहुबलु महु बाहुबलहि अग्गइ ॥1 ॥
ता दूउ विणिग्गओ णियपुरं गओ तम्मि णिवणिवासं । सो विण्णव सायरं सारसायरं पणविउं महीसं ॥ 1 ॥ विसमु देव बाहुबलि णरेसरु कज्जु ण बंधइ बंधड़ परियरु पई उ पेच्छइ पेच्छइ भुयबलु माणु ण छंडइ छंडइ भयरसु संति ण मण मण्णइ कुलकलि तुज्झु ण णवइ णवइ मुणितंडउ
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हुण संधइ संधइ गुणि सरु ॥2॥ संधि ण इच्छइ इच्छइ संगरु ॥3॥ आणण पालइ पालइ णियछलु ॥ 4 ॥ दयवु ण चिंतइ चिंतइ पोरिसु ॥5॥ पुहइ ण देइ देइ वाणावलि ॥6॥ अंगुण कड्ढड् कड्ढइ खंडउ ॥ 7 ॥
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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