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देव ण देइ भाइ तुह पोयणु ढोयइ रयणंइ णउ करिरयणइं
पर जाणमि देसइ रणभोयणु ॥8॥ ढोएसइ ध्रुवु णरउररयणइं ॥9॥
घत्ता -
संताणु कुलक्कमु गुरुकहिउ खत्तधम्मु णउ वुज्झइ। मज्जायविवज्जिउ सामरिसु अवसें दाइउ जुज्झइ॥10॥
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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