________________
(जो) सोने के तीर से सियार को आहत करता है, (जो) मोती की रस्सी से बन्दर को बाँधता है। (3) (जो) खम्भे के प्रयोजन से देव-मन्दिर को तोड़ता है, (जो) सूत के निमित्त (माला में पिरोये हुए) दीप्त मणि को फोड़ता है। (4) (जो) कपूर के श्रेष्ठ वृक्ष को नष्ट करता है (और) (उससे) कोदों के खेत की बाड़ बनाता है। (5) (जो) चन्दन के वृक्ष को जलाकर (उससे) तिलों की खल को पकाता है (और) (जो) हाथ में सर्प को ढोकर विष ग्रहण करता है। (6) वह पीले, काले, लाल और सफेद माणिक्यों को छाछ के प्रयोजन से बेचता है। (7) जो मनुष्यत्व को भोग के प्रयोजन से नष्ट करता है, उसके समान हीन कौन कहा जाता है? (8) (जो) समत्व में चित्त को नहीं लगाता है (और) पुत्र, पत्नी और धन की अत्यन्त चिन्ता करता है। (9) (जो) जिह्वा और स्पर्शन इन्द्रियों के रस से सताया हुआ मरता है, जिस प्रकार मेढा मे-मे (शब्द) करता हुआ (मरता) है। (10) (जो) प्रलयकालरूपी बाघ (सिंह) के द्वारा खाया जाता है (तथा) दुःखरूपी अग्नि की ज्वाला के द्वारा जलाया जाता है। (11) (ऐसा) जीव बिलाव, हाथी, भैंसा, कुत्ता, बन्दर और सर्प होता है।
__ घत्ता - जिसके द्वारा कैलाश पर्वत पर जाकर पिता के द्वारा बताया हुआ तप का आचरण (यदि) किया जाता है (तो) (उस) संसारी के द्वारा यहाँ अत्यन्त दुसह्य-दुःखकारी प्यास छेदी जाती है।
अपभ्रंश काव्य सौरभ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org