________________
द्वारा भी छुआ नहीं जाता (तो भी) उससे ही (बनी हुई) प्रतिमा चन्दन से लीपी जाती है। (4) यदि कीचड़ लगता है, (तो) पाँव धोया जाता है, किन्तु (कीचड़ में उत्पन्न) कमल की माला जिनेन्द्र के (चरणों में) चढ़ती है। (5) दीपक स्वभाव से काला होता है, (तो भी) बत्ती की शिखा से घर सुशोभित किया जाता है। (6) नर और नारी में इतना (ही) अन्तर है कि मरने पर भी (नारी-रूपी) बेल (नररूपी) वृक्ष को नहीं छोड़ती है। (7) तुम्हारे द्वारा यह बोल किसलिए प्रारम्भ किया गया (है)। मेरे द्वारा आज भी सतीत्व की पताका भली प्रकार से ऊँची की गई है। (8) तुम देखते हुए (हो) (कि) मैं (आज भी) अत्यन्त विश्वासयुक्त (हूँ), यदि अग्नि जलाने के लिए समर्थ है (तो) जलावे।
अपभ्रंश काव्य सौरभ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org