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पाठ -6
महापुराण
सन्धि - 16
16.3
घत्ता
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थिउ चक्कु ण पुरवरि पइसरइ णावइ केण वि धरियउ। ससिबिंबु व णहि तारायणहिं सुरवरेहिं परियरियउ॥13॥
16.4
ता भणियं णिराइणा रूढराइणा चंडवाउवेयं।
किं थियमिह रहंगयं णिच्चलंगयं तरुणतरणितेयं॥1॥ तं णिसुणेप्पिणु भणइ पुरोहिउ जेणेयह गइपसरु णिरोहिउ॥2॥ अक्खमि तं णिसुणहि परमेसर देवदेव दुज्जय भरहेसर।।3।। भुयजुयबलपडिबलविद्दवणहं
पयभरथिरमहियलकंपवणहं ॥4॥ तेओहामियचंददिणेसहं
जणणदिण्णमहिलच्छिविलासहं ॥5॥ कित्तिसत्तिजणमेत्तिसहायहं
को पडिमल्लु एत्थु तुह भायह॥6॥ सेव करंति ण णहभाईवई
णउ णवंति तुह पयराईवइं॥7॥
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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