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धुज्जइ पाउ पंकु जइ लग्गइ दीवउ होइ सहावें कालउ णर-णारिहिँ एवड्डउ अन्तरु ऍह पइँ कवण वोल्ल पारम्भिय तुहुँ पेक्खन्तु अच्छु वीसत्थउ
कमल-माल पुणु जिणों वलग्गइ॥4॥ वहि-सिहएँ मण्डिज्जइ आलउ॥5॥ मरणे वि वेल्लि ण मेल्लइ तरुवरु॥6॥ सइ-वडाय मइँ अज्जु समुब्भिय ॥7॥ डहउ जलणु जइ डहेवि समत्थउ॥8॥
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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