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________________ 83.6 (1) उसको सुनकर लवण (और) अंकुश की माता के द्वारा भरी हुई वाणी से विभीषण (को) कहा गया। (2) 'निष्ठुरहृदय राम के नाम को मत लो, (उनको) (मैं) जानती हूँ, (उनके द्वारा) (मेरी) कोई तृप्ति नहीं की गई। (3) जिनके द्वारा डाकिनियों, राक्षसों और भूतोंवाले डरावने वन में (मैं) रोती हुई डाल दी गई। (6) जहाँ पर जीता हुआ (जीवित) मनुष्य भी काट दिया जाता है, जहाँ विधाता और कालरूपी शत्रु (मृत्यु) भी प्राणों से छुटकारा पा जाता है। (7) उस वन में (मैं) अज्ञान से (अज्ञान में) डलवा दी गई। अब उसके लिए विमान से क्या (लाभ है)? घत्ता - ईर्ष्या से बोझिल (भरे हुए) चुगलखोरों के कथन (आलाप) से उसके द्वारा (राम के द्वारा) (मेरे मन में) जो सन्ताप उत्पन्न किया गया है, वह सैकड़ों (बार) मेहों के बरसने से भी कठिनाई से शान्त किया जायेगा। 83.8 (7) सतीत्व के गर्व के कारण सीता नहीं डरी, (सीता द्वारा) मुड़कर ईर्ष्या और गर्व से कहा गया (आक्रमण किया गया)। (8) 'पुरुष चाहे गुणवान हों अथवा तुच्छ किन्तु स्त्री के द्वारा चाहे (वह) मरती हुई (हो, तो भी) वे विश्वास किये जाते हैं। घत्ता - घास फूस (व) लकड़ी को बहाती हुई (ले जाती हुई) प्राचीन और पवित्र नर्मदा (नदी) का जल (समुद्र में गिरता है) तो भी समुद्र खार को देता हुआ नहीं थकता है। 83.9 (1) किसी (भी) जन के द्वारा कुत्ता आदर नहीं दिया जाता, (यदि) वह गंगा नदी में भी नहलाया जाय। (2) चन्द्रमा कलंकसहित (होता है) (किन्तु) उससे (उत्पन्न) प्रभा निर्मल (होती है)। मेघ काला (होता है) (पर) उससे (उत्पन्न) बिजली उज्ज्वल (होती है)। (3) पत्थर अपूज्य (होता है) (इसलिये) किसी के अपभ्रंश काव्य सौरभ 39 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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