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अण्णु इ दुक्किय-कम्म-जणेरउ सव्वंसह वि सहेवि ण सक्कइ वेव वाहिणि किं मइँ सोसहि छिज्जमाण वणसइ उग्घोसइ पवणु ण भिड भाणु कर खञ्चइ विन्धइ कण्टेहिँ व दुव्वयणेहिँ
घत्ता
तं णिसुणेवि पहाणउ 'एत्तिउ रुअमि दसासहों एण सरीरें अविणय - थाणें सुरचावेण व अथिर-सहावें
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केरउ ॥ 4 ॥ थक्क || 5 | ओसहि ॥6॥
गरुअउ पाव- भारु जसु अह अण्णाउ भणन्ति ण धाहावइ खज्जन्ती कइहुँ मरणु णिरासहों होसइ ॥ 7 ॥ धणु राउल - चोरग्गिहुँ सञ्चइ ॥8॥ विस - रुक्खु व मण्णिज्जइ सयर्णेहिं ॥ 9 ॥
धम्म - विहूणउ पाव- पिण्डु अणिहालिय - थामु । सो रोवेवर जासु महिस- विस मेसहिँ णामु ॥10॥
77.4
भइ विहीण - राणउ । भरिउ भुवणु जं अयसहों ॥ 1 ॥ दिट्ठ- णट्ठ-जल-बिन्दु-समाणें तडि-फुरणेण व तक्खण - भावें ॥3॥
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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