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लिए, (दोषियों को) कैदी रूप में पकड़ने में, (गाय की चोरी होने पर) गाय के संरक्षण में, स्वामी के (कठिन) समय में, मित्र की सहायता में, निज का अपमान होने पर, (तथा) (जिसके द्वारा) दूसरे के दुःख में (काम में) नहीं लगा जाता है, हे विभीषण! वैसा पुरुष रोया जाता है। (4-7) अन्य भी (जो) पाप-कर्म का उत्पादक (है) (वह) (तथा) जिसके (जीवन में) पाप का बहुत भारी बोझ (है) (वह) (रोया जाता है) (जिसको) पृथ्वी भी सहने के लिए समर्थ नहीं है (वह भी) (जिस) अन्याय को कहती हुई नहीं थकती है, (जिसके कारण) नदी काँपती है, (और उसको कहती है) (कि) (तुम) (मेरा) (प्रयोग करके) मुझको क्यों सुखाते हो? (ऐसा व्यक्ति रोया जाता है) (जिसके कारण) खाई जाती हुई औषधि हाहाकार मचाती है, (अर्थात् दुःखी होती है), (जिसके कारण) काटी जाती हुई वनस्पति घोषणा करती है (ऊँची आवाज में कहती है) (कि) (ऐसे) दुष्ट चित्तवाले (व्यक्ति) का मरण कब होगा? (8) उस (पापी) के (साथ) (शीतल) पवन भी (बार-बार) भिड़ता है (और) सूर्य की (तप्त) किरणें (भी) (उसे) परास्त कर देती हैं। (वह) राजकुल के चोरों की स्तुति से धन इकट्ठा करता है। (9) (वह) (सभी को) दुर्वचनरूपी काँटों से बींध देता है। (वह) स्वजनों द्वारा विष-वृक्ष की तरह माना जाता है (ऐसा व्यक्ति रोया जाता है)।
घत्ता - (जो) धर्मरहित (है), (जो) पाप का पिण्ड (है), (जिसका) यहाँ निवास किया हुआ (अन्य) (कोई) स्थान नहीं है (जिसका कोई ठौर-ठिकाना नहीं है) जिसका नाम महिष, वृष और मेष (राशि) के द्वारा (कहा जाता है) वह रोया जाना चाहिये।
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' (1) उसको सुनकर प्रधान राजा विभीषण ने कहा (कि) (चूँकि) दसमुखवाले (रावण) के द्वारा (यह) जगत अपयश से भर दिया गया है (इसलिये) (मैं) इतना रोता हूँ। (2) (प्राय:) देखा गया (है) (कि) जल-बिन्दु के समान (अस्थिर) तथा दोष के घर इस शरीर के द्वारा नाश को प्राप्त हुआ गया (है) (इतना तो मैं समझता हूँ)। (3) (और यह भी समझता हूँ) (कि) (शरीर) अस्थिर-स्वभाववाले इन्द्र-धनुष के समान है (और) शीघ्र (परिवर्तनशील) अवस्था होने से बिजली की चमक के
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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