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77.1
(1) दुःखी मन और उदास मुखवाला (तथा) आँसू के जल से गीली हुई आँखोंवाला कपि (-चिह्न युक्त) ध्वज (लिये हुए) जन-समूह (वहाँ) पहुँचा जहाँ रावण मार गिराया गया (था)। (2) उस (समूह) के साथ (बाहर) फैले हुए नामवाले (विख्यात) राम और लक्ष्मण द्वारा (भी) (पड़ा हुआ) रावण देखा गया। (3) जमीन पर गिरे हुए (उसके) मुकुट-सहित सिर देखे गए, मानो पराग-सहित कमल (हों)। (4) (वहाँ) खुले हुए ललाट देखे गए, मानो पड़े हुए अर्द्धचन्द्र के प्रतिबिम्ब (हों)। (5) मणियों से (बने हुए) कान्तियुक्त-कुण्डल देखे गए, मानो गिरे हुए अनेक रवि-चक्र (हों)। (6) भौं के विकार से भयंकर (हुई) भौंहें देखी गईं, मानो (वे) धुएँ के आश्रयवाली प्रलय की आग की ज्वालाएँ (हों)। (7) (उसके) लम्बे और चौड़े नेत्र देखे गए, मानो (वे) मृत्यु तक (आजीवन) आसक्त स्त्री-पुरुष के जोड़े (हों)। (8) (उसके) मुख-विवर (और) दाँतों से काटे होठ देखे गए, मानो (वे) यम के अप्रीतिकर मृत्यु के साधन (हों)। (9) योद्धाओं के समूह द्वारा (रावण की) महा-भुजाएँ देखी गईं, मानो बड़ के पेड़ के द्वारा निकाली हुई (छोड़ी हुई) शाखाएँ (हों)। (10) चक्र के द्वारा फाड़ी हुई (दमकती) छाती देखी गई, मानो (आकाश के) मध्य में स्थित सूर्य के द्वारा दिन का बीच (दो बराबर के भाग) (हुए) (हों)। (11) मानो विंध्य (पर्वत) के द्वारा पृथ्वीतल विभक्त कर दिया गया (हो), मानो (पृथ्वी के) विविध भागों द्वारा अंधकार इकट्ठा किया गया (हो)।
घत्ता - युद्धस्थल में रावण के (पड़े हुए) मुखों को देखकर राम के द्वारा (विभीषण को) छाती से लगाकर धीरज बँधाया गया। (और) (कहा गया) (कि) हे विभीषण! (तुम) क्यों रोते हो?
77.2
(1) वह (ही) मरा हुआ (है), जो अहंकार के नशे में चूर (है) (तथा) (जिसके द्वारा) जीव-दया छोड़ दी गई (है)। (जो) व्रत और चारित्र से हीन है, (जो) दान और युद्ध-स्थल में भीरु (है)। (2-3) (जो) शरण में आए हुए के
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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