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________________ णिरत्थ व्यर्थ गय (णिरत्थ) 1/1 वि (गय) भूकृ 1/1 अनि अव्यय [(दुज्जण)-(उवयार) 1/1] जिह हुआ जिस प्रकार दुर्जन के प्रति (किया गया) उपकार दुज्जणउवयार 13. अथिरेण अस्थिर थिरा स्थिर मइलेण (अथिर) 3/1 वि (थिर- (स्त्री) थिरा) 1/1 वि (मइल) 3/1 वि (णिम्मल- (स्त्री) णिम्मला) 1/1 वि (णिगुण) 3/1 वि [(गुण)-(सार-सारा) 1/1 वि] णिम्मला णिग्गुणेण गुणसारा मलिन निर्मल गुणरहित गुणों (की प्राप्ति) के लिए श्रेष्ठ शरीर से काएण जा (काअ) 3/1 (जा) 1/1 सवि (विढप्प) व 3/1 अक (ता) 1/1 सवि (किरिया) 1/1 जो उदय होती है विढप्पड़ ता वह किरिया क्रिया क्यों कि अव्यय नहीं अव्यय (कायव्व) विधिकृ 1/1 अनि कायव्वा की जानी चाहिए 14. अप्पा आत्मा बुज्झिउ समझी गई. नित्य णिच्चु जइ यदि (अप्प) 1/1 (बुज्झ-बुज्झिय) भूकृ 1/1 (णिच्च) 1/1 वि अव्यय [[(केवलणाण)-(सहाअ) 1/1] वि] अव्यय (पर) 6/1 वि (किज्जइ) व कर्म 3/1 सक अनि केवलणाणसहाउ केवलज्ञान स्वभाववाली भिन्न की जाती है किज्जइ अपभ्रंश काव्य सौरभ 362 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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