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________________ घरु (घर) 2/1 (परियण) 2/1 घर (को) नौकर-चाकर को परियणु लहु शीघ्र छंडि अव्यय (छंड) संकृ छोड़कर 11. दुइ पुणु भुल्लउ जीव fel.letikultufinus! Badla व विसयसुहा [(विसय)-(सुह) 1/2] विषय-सुख (दुइ) 6/2 वि दिवहडा (दिवह+अड) 6/2 ‘अड' स्वार्थिक दिन के अव्यय और फिर दुक्खहं (दुक्ख) 6/2 दुःखों का परिवाडि (परिवाडि) 1/1 क्रम (भूल्लअ) भूकृ 8/1 अनि 'अ' स्वार्थिक भूले हुए (जीव) 8/1 हे जीव अव्यय मत (वह-वाह) प्रे. विधि 2/1 सक चला (तुम्ह) 1/1 स अप्पाखंधि [(अप्प'-- अप्पा) वि-(खंध) 7/1] अपने कन्धे पर कुहाडि (कुहाडि) 2/1 कुल्हाड़ी 12. उव्वलि (उव्वल) विधि 2/1 सक उपलेपन कर चोप्पडि (चोप्पड) विधि 2/1 सक घी, तेल आदि लगा (चिट्ठा) 2/2 चेष्टाएँ (कर) विधि 2/1 सक कर (दा) विधि 2/1 सक खिला सुमिठ्ठाहार [(सुमिठ्ठ)+(आहार)] सुमधुर आहार [(सुमिठ्ठ) वि-(आहार) 2/1] सयल (सयल) 1/1 वि सब कुछ अव्यय (देह) 4/1 देह के लिए समास में ह्रस्व का दीर्घ हो जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 1-4) चिट्ठ करि देहि ही 361 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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