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घत्ता
घत्ता
दिट्टु पुण णाहु पिय- णारिहिँ वाहिणिहिँ व सुक्कउ रयणायरु कुमुइणिहि व्व जरढ-मयलञ्छणु अमर - वहूहिँ व चवण- पुरन्दरु भमरावलिहि म्व सूडिय - तरुवरु कलयण्ठीहि म्व माहव - णिग्गमु वहुल-पओसु व तारा - पन्तिहिं दस - सिरु - दस - सेहरु दस-मउडउ
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सुरवर
- सण्ढ - वराइणा सयल-काल जे मिग सम्भूया रावण पइँ सीहेण विणु ते वि अज्जु सच्छन्दीहूया ॥ 9 ॥
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भाइ - विओएं तिह तिह दुक्खण
76.7
ऍिवि अवत्थ दसाणणहों 'हा हा सामि' भणन्तु स - वेयणु । अन्तेउरु मुच्छा-विहलु णिवडिउ महिहिँ झत्ति णिच्चेयणु ॥9॥
सन्धि
सुत्तु मत्त - हत्थि व गणियारिहिं ॥ 1 ॥ कमलिणिहिं व अत्थवण-1 -दिवायरु ॥2॥ विज्जुहि व्व छुड छुड वरिसिय- घणु ॥3॥ गिम्भ - दिसाहिं व अञ्जण - महिहरु ॥4॥ कलहंसीहि म्व अ - जलु महा-सरु ॥5॥ णाइणिहिँ व हय - गरुड - भुयङ्गमु ॥16 ॥ तेम दसास - पासु ढुक्कन्तिहिँ ॥ 7 ॥ गिरि व स - कन्दरु स-तरु स - कूडउ ॥8॥
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जिह जिह करइ विहीसणु सोउ । -वल- वाणर- लोउ ॥
रुवइ स - हरि
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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