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घत्ता हे रावण! बेचारे देवताओं के समूह द्वारा, जो सभी काल में (तुम्हारे
समक्ष ) हरिण ( के समान) रहे, तेरे (जैसे) सिंह के बिना वे ही आज स्वच्छन्दी हुए ।
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(1) फिर प्रिय पत्नियों द्वारा पति देखा गया, जैसे हथिनियों के द्वारा सोया हुआ मतवाला हाथी (देखा गया) (हो) । (2) जैसे नदियों द्वारा सूखा हुआ समुद्र ( देखा गया) (हो), जैसे कमलिनियों के द्वारा डूबने से ( समाप्त हुआ) सूर्य (देखा गया हो) । (3) जैसे कुमुदिनियों के द्वारा क्षीण चन्द्रमा ( देखा गया हो ), जैसे बिजलियों द्वारा पुनः पुनः बरसा हुआ बादल ( देखा गया हो) । (4) जैसे देवताओं की स्त्रियों द्वारा मरण को प्राप्त इन्द्र ( देखा गया हो ), जैसे ग्रीष्म में दिशाओं द्वारा (सूखे) वृक्षों से युक्त पर्वत ( देखा गया हो ) | ( 5 ) जैसे भँवरों की पंक्तियों द्वारा नाश को प्राप्त श्रेष्ठ वृक्ष (देखे गए) (हों), जैसे राज - हंसनियों द्वारा जलरहित बड़ा तालाब (देखा गया हो) । (6) जैसे कोकिलों द्वारा बसन्त ऋतु का ( चला) जाना (देखा गया हो), जैसे नागिनियों द्वारा गरुड़ से मारा हुआ सर्प (देखा गया हो) । (7) जैसे तारों की पंक्तियों द्वारा दोषों से युक्त कृष्ण पक्ष ( देखा गया हो ), उसी प्रकार दसमुखवाले (रावण) के पास जाती हुई ( रानियों) के द्वारा ( दोषयुक्त) (पति) (देखा गया)। (8) (उसके ) दस सिर, दस शिखा तथा दस मुकुट ( थे ) ( मानो) पर्वत ( ही ) गुफा - सहित, वृक्ष - सहित (तथा) शिखर - सहित (हो) ।
घत्ता रावण की ( ऐसी) अवस्था को देखकर पीड़ासहित हाय-हाय स्वामी कहते हुए अन्त: पुर (रानियों का समुदाय) मूर्च्छा से व्याकुल ( हुआ) (और) शीघ्र ( ही ) पृथ्वी पर चेतना - रहित ( होकर ) गिरा ।
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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सन्धि
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भाई के वियोग से विभीषण जैसे-जैसे शोक करता, सहित वानर जाति के लोग दुःख के कारण रोते ।
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वैसे-वैसे राम-लक्ष्मण
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