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15.
जित्थु
अव्यय
जहाँ
जित्थु
जहाँ
ण
सो
वह
मुणि
और
अव्यय
नहीं इंदिय-सुह-दुहइँ
[(इंदिय)-(सुह)-(दुह) 1/2] इन्द्रिय-सुख-दुःख अव्यय अव्यय
नहीं मण-वावारु [(मण)-(वावार) 1/1]
मन का व्यापार (त) 1/1 सवि अप्पा (अप्प) 1/1
आत्मा (मुण) विधि 2/1 सक
समझ जीव (जीव) 8/1
हे जीव तुहुँ-तुहुँ
(तुम्ह) 1/1 स अण्णु (अण्ण) 2/1 वि
दूसरी को (परं+इ) परं-अव्यय
पूरी तरह से, इ%3Dअव्यय अवहारु
(अवहार+उ) विधि 2/1 सक छोड़ दे 16. देहादेहहिँ-देहादेहहिं [(देह)+(अदेहहिं)]
देह में और बिना देह के [(देह)-(अदेह) 7/1]
अपने में जो
(ज) 1/1 सवि वसई (वस) व 3/1 अक
रहता है भेयाभेय-णएण [(भेय)+(अभेय)+ (णएण)]
भेद और अभेद [(भेय)-(अभेय)-(णअ) 3/1] दृष्टि से (त) 1/1 सवि
वह अप्पा (अप्प) 1/1
आत्मा मुणि (मुण) विधि 2/1 सक
समझ जीव (जीव) 8/1
हे जीव (तुम्ह) 1/1 स 1. पर्दो के अन्त में यदि 'उ, हुं, हिं, हं' इन चारों अक्षरों में से कोई भी अक्षर आ जाय तो इनका
उच्चारण प्रायः ह्रस्व रूप से होता है। इसलिये यहाँ 'देहादेहहिं' और 'तुहुं' को क्रमश: 'देहादेहहिँ और 'तुहँ किया गया है।
जो
तुहुँ-तुहुं
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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