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བྷྲ གཽ སྠཽ ཡཾ ཎཱ ཚཱ ཤྲཱ ལྤ ཏྠཱ ཡ ཝཱ ཤྲཱ ཚཱ དྒཱ མ ཎྜཱ ཙྪཱ
तसु
वि
मुण्डियउं
जसु
खल्लिहडउ
सीसु
12.
त
तेत्तिउ
जलु
सायरहो
1.
2.
3.
4.
337
अनुस्वार का आगम ।
खल्लिहड = गंजा ।
भवि 3/1 अक
( कर-करन्त-करत ' ) वकृ 1 / 1
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अव्यय
( अच्छ) विधि 2 / 1 अक
( सन्त) 2 / 2 वि
(भोग) 2/2 (ज) 1 / 1 सवि
(परिहर) व 3 / 1 सक (त) 6 / 1 सवि
(कान्त - कन्त) 6 / 1 (बलि) 2 / 1
(कीसु) व 1 / 1 सक
(त) 6 / 1 स
(दइव) 3 / 1
अव्यय
(मुण्ड - मुण्डिय - मुण्डियअ) भूक 1 / 1 'अ' स्वार्थिक
(ज) 6/1 स
( खल्लिहड - अ ) ' 1 / 1 वि 'अ' स्वा.
(सीस) 1 / 1
'करत' प्रयोग विचारणीय है।
हेम प्राकृत व्याकरण 4 - 389
(त) 1/1 वि
( तेत्तिअ ) 1 / 1 वि
(जल) 1 / 1
( सायर) 6/1
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होगा
सोचता हुआ
मत
ਕੈਟ
विद्यमान
भोगों को
जो
त्यागता है
उस (की)
सुन्दर (व्यक्ति) की
ླ
पूजा
करता हूँ
उसका
दैव के द्वारा
ही
मुण्डा हुआ
जिसका
गंजा
सिर
वह
उतना ( इतना )
जल
सागर का
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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