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________________ अव्यय अवसर-निवडिआई समय आ पड़ने पर तिण-सम [(अवसर)-(निवड-निवडिअ) भूकृ 7/1] [(तिण)-(सम) 1/1 वि] (गण) व 3/1 सक (विसिट्ठ) भूकृ 1/1 अनि गणइ तिनके के समान गिनता है विशेष गुण-सम्पन्न विसिट्ट बलि अब्भत्थणि बलि (राजा) से माँगनेवाला होने के कारण विष्णु छोटा महु-महणु लहई हुआ RAM (बलि) 6/1 (अब्भत्थण) 7/1 (महुमहण) 1/1 (लहु-(स्त्री) लहुई) 1/1 वि (हूआ) भूकृ 1/1 अनि (त) 1/1 सवि अव्यय अव्यय (इच्छ) विधि 2/1 सक (बड्डत्तणअ) 2/1 'अ' स्वार्थिक (दा) विधि 2/1 सक अव्यय (मग्ग) विधि 2/1 सक (क) 1/1 स यदि इच्छहु वड्डत्तणउं चाहते हो बड़प्पन को मत मग्गहु माँगो कोई कुछ (भी) 9. कुञ्जर सुमरि (कुञ्जर) 8/1 हे गजराज (सुमर) विधि 2/1 सक याद कर श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 146 कभी-कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134) कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-135) श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 212 अनिश्चित अर्थ के लिए 'इ' जोड़ दिया जाता है। 5. अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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