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सउणिह
पक्षियों के लिए
पक्क
पके
फलाई
फल
सो
(सउणि) 4/2 (पक्क) 2/2 वि (फल) 2/2 (त) 1/1 सवि अव्यय (सुक्ख) 1/1 वि (पइट्ठ) भूक 1/2 अनि
वरि
सुक्खु
सुख प्रवेश (प्रविष्ट) हुआ
अव्यय
नहीं
अव्यय
कण्णहिं खल-वयणाई
(कण्ण) 7/2 [(खल) वि-(वयण) 1/2]
पादपूरक कानों में दुष्टों के वचन
5.
धवलु
उत्तम बैल
विसूरइ
खेद करता है
सामि
अहो
(धवल) 1/1 (विसूर) व 3/1 अक (सामि) 6/1 अव्यय (गरुअ) 2/1 वि (भर) 2/1 (पिक्ख) संकृ (अम्ह) 1/1 स
गरुआ
स्वामी के सम्बोधनार्थक बड़े (को) भार को देखकर
भरु
पिक्खेवि
अव्यय
क्यों
जुत्तउ
अव्यय
नहीं (जुत्तअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक जोत दिया गया (दु)' 6/2 वि
दो (में) (दिसि) 7/2
दिशाओं में (खंड) 2/2
विभाग (दो) 2/2 वि
दिसिहं
खंडई
दोणि
1.
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134)
333
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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