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हउँ
एत्थु
यहाँ
आउ
आया
तुव
(अम्ह) 1/1 स अव्यय (आअ) भूकृ 1/1 अनि (तुम्ह) 6/1 स [(बोहण)+(अत्थि)] [(बोहण)-(अत्थि) 1/1 वि] [(पयडिय)+ (सुव)+आउ)] [(पयडिय) भूक-(सुव)-(आयु) 1/1]
तुम्हारी
बोहणत्थि
शिक्षा (बोध) का इच्छुक
पयडिय-सुवाउ
प्रकट की गयी, पुत्र की आयु
वयणु
सुणिवि उवसंतमोह
कर-चरण
(इय) 2/1 सवि
इस (वयण) 2/1
वचन को (सुण+इवि) संकृ
सुनकर [[(उवसंत) भूकृ अनि-(मोह) 1/1] वि] शान्त हुआ, मोह [(कर)-(चरण) 2/2]
हाथ-पैरों को (मुअ+इवि) संकृ
छोड़कर (जा--(भूकृ) जाय- (स्त्री) जाया) भूकृ 1/1 (सुबोहा) 1/1 वि
उत्तम ज्ञानवाली
मुइवि
जाया
सुबोह
10.
पुणु णिय-मुणिणाह पासि
देव के द्वारा फिर अपने मुनिनाथ (गुरु) के
पास
वरु
(देव) 3/1 अव्यय [(णिय) वि-(मुणिणाह) 6/1] | (पास) 7/1 अव्यय [(गुह)-(अब्भंतर) 7/1] अव्यय (गय) भूक 1/1 अनि (तासि)' 6/1 वि
श्रेष्ठ
गुह-अब्भंतरि
गुफा के भीतर
ही
गय
जाया गया
तासि
भयंकर
1.
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134)
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अपभ्रंश काव्य सौरभ
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