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________________ किम अव्यय जणणि मज्झ (जणणी) 1/1 (अम्ह) 6/1 स (हुव-हुअ हुआ) भूकृ 1/1 [(सोक्ख)-(रासि) 1/1 वि] हुवा सोक्खरासि सुख की खान 9. जाकर जाइवि संबोहमि (जा+इवि) संकृ (संबोह) व 1/1 सक (ता) 6/1 स समझाता हूँ (समझाऊँगा) उसको ताहिर अव्यय आज अज्जु जिम अव्यय जिससे सिद्ध होता है (सिद्ध हो) सिज्झइ तहि उसका (सिज्झ) व 3/1 अक (ता) 6/1 स (परलोअ) 7/1 (कज्ज) 1/1 परलोइ परलोक में कज्जु कार्य 10. अण्णु दूसरी भी णियगुरु-चरणारविंद निज गुरु के चरणरूपी कमलों को (अण्ण) 2/1 वि अव्यय [(णिय) + (गुरु)+(चरण)+ (अरविंद)] [(णिय) वि-(गुरु)-(चरण)-(अरविंद) 2/2] (पणम+अवि) संकृ (जा+इवि) संकृ [(गइ)-(मल) 1/1 वि] (अणिंद) 1/1 वि पणमवि प्रणाम करके जाइवि जाकर मलरहित गइमल अणिंद निंदारहित हुय-भूअ भूत (प्राकृत कोश)। स्त्रीलिंग शब्दों की षष्ठी विभक्ति एकवचन में 'हि' प्रत्यय भी प्रयोग में आता है। (श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 157) कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134) अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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