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मुझको
छंडि
गयउ
IM
विएसि
(अम्ह) 6/1 स (छंड+इ) संकृ
छोड़कर (गयअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक चला गया (तुम्ह) 1/1 स अव्यय
क्यों (विएस) 7/1
परदेश में (अम्ह) 1/1 स (पाण) 2/1 (चय) व 1/1 सक
छोड़ती हूँ अव्यय अव्यय
यहाँ (इस) (पएस) 7/1
स्थान पर
हे
पाण
प्राण
चयमि
पएसि
इय
यह
भणिवि
चलण-कर
(इअ) 2/1 सवि (भण) संकृ [(चलण)-(कर) 2/2] (मेलव+एवि) संकृ (आलिंग) व 3/1 सक अव्यय (णेह) 3/1 (ले+एवि) संकृ
कहकर हाथों और पैरों को मिलाकर आलिंगन करती है
मेलवेवि
आलिंग
जा
जब
णेहेण
स्नेह से
लेवि
उठाकर
ता
अव्यय
तब
सुरवरु चिंतइ सग्गवासि
(सुरवर) 1/1 (चिंत) व 3/1 सक [(सग्ग)-(वासि) 1/1 वि]
श्रेष्ठ देव विचारता है स्वर्ग का वासी
कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134)
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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