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________________ हउँ दुक्ख किं 1 मुक्की णिक्कारणि उवेक्खि 4. वारंत हँ' सव्वहँ गयउ काइ हा हा किं णायउ गेह-ठाइ 5. किं कुमइ जाय तुव एह पुत वणि आवासिउ कमलवत्त 1. 321 ( अम्ह) 1 / 1 स (स- दुक्ख ) 7/1 अव्यय (मुक्क~ (स्त्री) मुक्की) भूक 1 / 1 अनि ( णिक्कारण) 7 / 1 वि ( उवेक्ख) संकृ Jain Education International ( वार - वारंत) वकृ 6/2 रोकते हुए (सव्व) 6 / 2 वि सबके ( गयअ) भूक 1 / 1 अनि 'अ' स्वार्थिक गये अव्यय क्यों अव्यय अव्यय [(ण) + (आयउ ) ] ण = अव्यय (आयअ) भूकृ 1 / 1 अनि 'अ' स्वार्थिक [(गेह) - (ठाअ) 7 / 1 ] अव्यय (कुमइ) 1/1 ( जा-जाय जाया) भूकृ 1/1 ( तुम्ह ) 6 / 1 स (एता) 1 / 1 सवि (पुत्त) 8/1 अव्यय (वण) 7/1 (आवास) भूक 1 / 1 [[ ( कमल) - ( वत्त) 8 / 1] वि] - मैं अत्यन्त दुःख क्यों छोड़ दी गई निष्कारण उपेक्षा करके For Private & Personal Use Only में होने पर हाय-हाय क्यों नहीं, पहुँचे निवास स्थान में कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134) क्यों कु उत्पन्न हुई तुम्हारे यह हे पुत्र कि वन में रहा गया कमल के समान मुखवाले अपभ्रंश काव्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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