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________________ कंदहि रोओ हे बहिन बहिणि पुर-सयासि नगर के पास (कंद) विधि 2/1 अक (बहिणि) 8/1 [(पुर)-(सयास) 7/1] (त) 1/1 सवि (णिवस) व 3/1 अक (रयणी)12/1 णिवसई वह रहता है (रहेगा) रात्रि में रयणी 17. जिम णियउरि धरियउ खीरें भरियउ परपेसणेण पोसियउ अव्यय पादपूरक [(णिय) वि-(उर) 7/1] निज छाती से (धर-धरियअ) भूकृ 1/1 'अ' स्वार्थिक लगाया गया (खीर) 3/1 दूध से (भर-भरियअ) भूकृ 1/1 'अ' स्वार्थिक पोषित [(पर) वि-(पेसण) 3/1] दूसरों की सेवा से अव्यय (पोस-पोसिय--पोसियअ) भूकृ 1/1 'अ' स्वार्थिक पाला गया [(मह) वि-(दुक्ख) 3/1] बड़े कष्टों से (पाल) भूकृ 1/1 रक्षण किया गया (देह) 3/1 देह से (लाल) भूकृ 1/1 स्नेहपूर्वक सम्भाला गया (त) 2/1 स उसको (वीसर) व 3/1 सक भूलता है (भूलेगा) अव्यय कैसे (हियअ) 1/1 हृदय मह-दुक्खें पालिउ देहँ लालिउ वीसरइ केम हियउ कभी-कभी सप्तमी के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137) कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-135) अपभ्रंश काव्य सौरभ 314 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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