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1.
हउँ
होतउ
दुख-दालि-जडिउ
पुव्वक्कि
दुक्क
डिउ
2.
णिद्वंधउ
छुह- तिस-संभरिउ
जणणिए
सहु
संतर
फिरिउ
3.
थक्कइ
असोय-माम
जि
घरि
ह
अत्थि
पट्टि
हिं
1.
2.
315
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3.19
मैं
होता हुआ
दु:ख-दरिद्रता से युक्त
[ ( दुक्ख ) - (दालिद्द) - (जडिअ ) भूक 1 / 1 अनि]
[(पुव्व) वि - (क्किय ) ' भूक 3 / 1 अनि ] पूर्व में किए हुए
(दुक्कम) 3/1
दुष्कर्म के द्वारा
( णड) भूकृ 1 / 1
नचाया गया
( अम्ह) 1 / 1 स
(हो-होत होतअ) वकृ 1 / 1
'अ' स्वार्थिक
->
(णिर्द्धधअ) 1 / 1 वि
[ ( छुहा - छुह ) 2 - (तिस) - (संभर) भूकृ 1 /1]
( जणणी) 3 / 1
अव्यय
(देसंतर) 2/1
(फिर) भूकृ 1 / 1
(थक्कअ) दे. 7/1 'अ' स्वार्थिक
[ ( असोय) वि- (माम ) 6 / 1 ]
अव्यय
(घर) 7/1
(अम्ह) 1 / 1 स
(अस) व 1 / 1 अक
(पवट्ट) भूकृ 1 / 1 (त) 7 / 1 सवि
धन्धेरहित
भूख-प्यास सहित
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माता के
साथ
विदेश में
फिरा
समय
अशोक मामा के
रहा
प्रवृत्त हुआ
उस
कभी-कभी तृतीया के लिए शून्य प्रत्यय का प्रयोग पाया जाता है। ( श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 147 )
कभी-कभी समास में दीर्घ का ह्रस्व हो जाता है।
पादपूरक
घर में
मैं
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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