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________________ 11. हा - हा किह सुवदंसणु होइ दुट्ठ विहिहिँ पुणु-पुणु सा कोस 12. भाय-भाय hc हा किम जीवेसमि सुबाहु सुवत्सु किम पेच्छेसमि 13. हा हा किं बंधव णिचितउ महु सुउ 1. 2. अपभ्रंश काव्य सौरभ अव्यय अव्यय [(सुव) - (दंसण) 1 / 1] (हो) भवि 3 / 1 अक (दुट्ठ) 6/11 वि (fafe) 6/11 अव्यय (ता) 1 / 1 सवि (कोस) व 3 / 1 सक Jain Education International (237) 8/1 अव्यय अव्यय (जीव ) भवि 1 / 1 अक (सुबाहु ) 2 / 1 वि ( सुवत्त) 2 / 1 वि अव्यय (पेच्छ) भवि 1 / 1 सक अव्यय अव्यय ( बंधव ) 8 / 1 ( णिचिंतअ ) 1 / 1 वि ( अम्ह ) 6 / 1 स (सुअ) 1/1 हाय-हाय कैसे For Private & Personal Use Only सुत का दर्शन होगा दुष्ट किस्मत को बार-बार वह कोसती है ( कोसने लगी) हे भाई, हे भाई हाय कैसे जनूँगी सुन्दर भुजावाले सुन्दर मुखवाले को कैसे देखूँगी कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134) षष्ठी एकवचन में 'हिँ' प्रत्यय भी होता है। ( श्रीवास्तव, पृष्ठ 151 ) हाय-हाय क्यों भाई निश्चिन्त मेरा पुत्र 312 www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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