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सो
णियत्तु
भयभीयउ
मुणइ
पवंचु
सयलु
इणु
की उ
9.
जाय
रयण
עב
सीह - भ ह-भयाउर
पल्लट्टिवि
गय
to
पुणु
णियघर
10.
तासु
जणणि
महदुक्खें
तत्ती
हुय
णिरास
खण
पगलियणेत्ती
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(त) 1 / 1 सवि
(णियत्त) भूक 1 / 1 अनि
[ (भय) - (भीयअ) भूकृ 1 / 1 अनि 'अ' स्वार्थिक]
(मुण) व 3 / 1 सक
( पवंच) 2 / 1
(सयल) 2 / 1 वि
(इम) 2 / 1 सवि
समझाता है (समझा )
छल
सबको
इस ( को )
(कीयअ) भूकृ 2/1 अनि 'अ' स्वार्थिक किया हुआ
( जा-जाय जाया) भूक 1/1
( रयणी) स्त्री 1/1
(त) 1/2 सवि
[(सीह) + (भय) + (आउर ) ] [ (सीह) - (भय) - (आउर ) 1 / 2 वि ]
(पल्लट्ट + इवि) संकृ
( गय) भूकृ 1 / 2 अनि
(त) 1/2 सवि
अव्यय
[ ( णिय) वि - (घर) 2 / 1]
(त) 6 / 1 स
( जणणी) 1 / 1
[ (मह) वि - ( दुक्ख ) 3 / 1]
(तत्त - (स्त्री) तत्ती) भूकृ 1 / 1 अनि
( हु - हुय - हुया ) भूकृ 1/1
(णिरास - (स्त्री) णिरासा) 1 / 1 वि
(खण) 7/1
[[ ( पगलिय) भूक - (णेत्त - (स्त्री) णेत्ती) 1/1] fa]
वह
लौटा
भयभीत
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हुई
रात्रि
सिंह के भय से पीड़ित
पलटकर
गये
वे
फिर
अपने घर को
उसकी
माता
महादुःख के कारण
दु:खी
हुई
निराश
क्षण में
बहते हुए नेत्रवाली
अपभ्रंश काव्य सौरभ
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