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________________ सो णियत्तु भयभीयउ मुणइ पवंचु सयलु इणु की उ 9. जाय रयण עב सीह - भ ह-भयाउर पल्लट्टिवि गय to पुणु णियघर 10. तासु जणणि महदुक्खें तत्ती हुय णिरास खण पगलियणेत्ती 311 Jain Education International (त) 1 / 1 सवि (णियत्त) भूक 1 / 1 अनि [ (भय) - (भीयअ) भूकृ 1 / 1 अनि 'अ' स्वार्थिक] (मुण) व 3 / 1 सक ( पवंच) 2 / 1 (सयल) 2 / 1 वि (इम) 2 / 1 सवि समझाता है (समझा ) छल सबको इस ( को ) (कीयअ) भूकृ 2/1 अनि 'अ' स्वार्थिक किया हुआ ( जा-जाय जाया) भूक 1/1 ( रयणी) स्त्री 1/1 (त) 1/2 सवि [(सीह) + (भय) + (आउर ) ] [ (सीह) - (भय) - (आउर ) 1 / 2 वि ] (पल्लट्ट + इवि) संकृ ( गय) भूकृ 1 / 2 अनि (त) 1/2 सवि अव्यय [ ( णिय) वि - (घर) 2 / 1] (त) 6 / 1 स ( जणणी) 1 / 1 [ (मह) वि - ( दुक्ख ) 3 / 1] (तत्त - (स्त्री) तत्ती) भूकृ 1 / 1 अनि ( हु - हुय - हुया ) भूकृ 1/1 (णिरास - (स्त्री) णिरासा) 1 / 1 वि (खण) 7/1 [[ ( पगलिय) भूक - (णेत्त - (स्त्री) णेत्ती) 1/1] fa] वह लौटा भयभीत For Private & Personal Use Only हुई रात्रि सिंह के भय से पीड़ित पलटकर गये वे फिर अपने घर को उसकी माता महादुःख के कारण दु:खी हुई निराश क्षण में बहते हुए नेत्रवाली अपभ्रंश काव्य सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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