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________________ फुल्ल पप्फुल्ल मेल्लेड (फुल्ल) 2/2 (पप्फुल्ल) भूक 2/2 अनि (मेल्ल) व 3/1 सक (वण) 1/1 (सव्व) 1/1 सवि फूलों को (फूल) खिले हुए छोड़ता है (छोड़ने लगा) वणु वन सव्वु समस्त मन्द आणंदयारी आनन्दकारी हुओ वाउ वावि (मंद) 1/1 वि (आणंदयारी) 1/1 वि (हुअ) भूक 1/1 (वाअ) 1/1 (वावी) 7/2 (कूव) 7/2 (अब्भहिअ) 1/1 वि (जल) 1/1 (जा-जाअ) भूकृ 1/1 हुआ (चला) पवन बावड़ियों में कुओं में अत्यधिक कुवेसु अब्भहिउ जलु जल जाउ भरा (उत्पन्न हुआ) 5. गोसमूहेहिँ विक्खित्तु थणदुद्ध एंतजंतेहिं पहिएहिँ [(गो)-(समूह) 3/2] (विक्खित्त) भूकृ 1/1 अनि [(थण)-(दुद्ध) 1/1] [(एंत) वकृ-(जंत) वकृ 3/2] (पहिअ) 3/2 वि (पह) 1/1 (रुद्ध) भूकृ 1/1 अनि गो-समूहों द्वारा बिखेरा गया थणों से दूध आते-जाते हुए (के कारण) पथिकों के कारण मार्ग रुक गया तब अव्यय (दिण) 7/1 दिन पर (छ8) 7/1 वि छठे कभी-कभी सप्तमी विभक्ति में शून्य प्रत्यय का प्रयोग पाया जाता है। (श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 147) छट्ठी-छट्टि (स्त्री) = जन्म के पश्चात् किया जानेवाला उत्सव। 2. 291 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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