SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उक्किट्ठकमसेण दाविया [(उक्किट्ठ) भूकृ अनि-(कमस) 3/1] (दाव-दाविय) भूकृ 1/1 (छट्टिय'-छट्टिया) 1/1 'य' स्वार्थिक उत्कृष्ट रूप से दिखलाया जन्म के पश्चात किया गया उत्सव छट्टिया ज्झत्ति अव्यय झटपट वइसेण (वइस) 3/1 वणिक (वैश्य) के द्वारा अट्ठ आठ दिवह वोलीण (अट्ठ) 1/2 वि (दो) 1/2 वि (दिवह) 1/1 (वोलीण) 1/1 वि अव्यय (जा) भूक 1/1 अव्यय व्यतीत शीघ्र जाय ताम तब जा अव्यय जब णाम जिणयासि अव्यय (जिणयासी) 1/1 [(स) वि-(अणुराय) 1/1] | नामक जिणदासी सणुराय अनुराग-सहित वालु सोमालु देविंदसमदेहु (वाल) 2/1 (सोमाल) 2/1 वि [[(देविंद)-(सम)-(देह) 2/1] वि] (ले+एवि) संकृ (भत्ति) 3/1 (जा+एवि) संकृ [(जिण)-(गेह) 2/1] बालक को सुकुमार इन्द्र के स्थान देहवाले लेकर भक्तिपूर्वक लेवि भत्तीए जाएवि जिणगेह जाकर जिनमन्दिर 9. तीयए (ता) 3/1 स (पेच्छ-पेच्छिय-पेच्छियअ) छट्ठी-छट्टि (स्त्री) = जन्म के पश्चात् किया जानेवाला उत्सव। उसके द्वारा देखे गये पेच्छियउ 1. अपभ्रंश काव्य सौरभ 292 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy